बाल एवं युवा साहित्य >> शेखचिल्ली के कारनामे शेखचिल्ली के कारनामेधरमपाल बारिया
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हंसी-मजाक से सराबोर घटनाओं का ऐसा मजेदार संग्रह जो सोचने पर विवश करे....
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
शेखचिल्ली के कारनामे
ऐसे चटपटे, गुदगुदाते कारनामों का संग्रह जो खेल-खेल में सिखाता है कि
कैसे कतरते हैं सयानों के भी कान
कुछ लोगों को समझ पाना बहुत कठिन होता है। ऐसे लोगों में से एक है शेखचिल्ली। वह खुली आँखों से सपने देखता है। उसकी अपनी ही दुनिया है। जिसका बादशाह वह स्वयं है। उसकी ऐसी हरकते हैं, जिन्हें पढ़कर व्यक्ति हँसने को मजबूर हो जाता है। वह शेखचिल्ली को बेवकूफ समझ बैठता है। लेकिन इस हंसी-मजाक से निकलने वाला परिणाम लोगों को हैरान कर देता है। क्योंकि वैसी किसी ने उम्मीद ही नहीं की होती। तभी तो ‘काजी जी’ जैसे सयाने उसकी बेकार-सी हरकत के आगे चारों खाने चित्त हो जाते हैं।
शेखचिल्ली की हरकतों को पढ़कर लगता है मानों हास्य-व्यंग्य साकार हो गया हो। इन हरकतों में ऐसा व्यंग्य है, जो हास्य के पिछले दरवाजे से निकलकर सामने आ खड़ा होता है। नन्हें बीज से उगे पौधे कब वृक्ष बन जाते हैं, पता ही नहीं चलता। आखिर में ये बेकार-सी हरकते पाठकों को कुछ सोचने-समझने के लिए बेबस कर देती हैं। सामान्य तौर पर हम जिसका अल्प प्रयोग करते हैं, उस बुद्धि को कुछ अधिक करने को उकसाती हैं ये अजीबोगरीब कहानियाँ। यहीं शेखचिल्ली की कहानियों की खासियत है।
इन खट्टे-मीठे और मजेदार किस्सों को हमने पहले डिमाई आकार में प्रकाशित किया था। पाठको ने इसे काफी पसंद किया। उन्हीं के आग्रह पर अब नये गेटअप में, ‘शेखचिल्ली के कारनामें’ आपके हाथों में है। आपके सुझावों का स्वागत है।
कुछ लोगों को समझ पाना बहुत कठिन होता है। ऐसे लोगों में से एक है शेखचिल्ली। वह खुली आँखों से सपने देखता है। उसकी अपनी ही दुनिया है। जिसका बादशाह वह स्वयं है। उसकी ऐसी हरकते हैं, जिन्हें पढ़कर व्यक्ति हँसने को मजबूर हो जाता है। वह शेखचिल्ली को बेवकूफ समझ बैठता है। लेकिन इस हंसी-मजाक से निकलने वाला परिणाम लोगों को हैरान कर देता है। क्योंकि वैसी किसी ने उम्मीद ही नहीं की होती। तभी तो ‘काजी जी’ जैसे सयाने उसकी बेकार-सी हरकत के आगे चारों खाने चित्त हो जाते हैं।
शेखचिल्ली की हरकतों को पढ़कर लगता है मानों हास्य-व्यंग्य साकार हो गया हो। इन हरकतों में ऐसा व्यंग्य है, जो हास्य के पिछले दरवाजे से निकलकर सामने आ खड़ा होता है। नन्हें बीज से उगे पौधे कब वृक्ष बन जाते हैं, पता ही नहीं चलता। आखिर में ये बेकार-सी हरकते पाठकों को कुछ सोचने-समझने के लिए बेबस कर देती हैं। सामान्य तौर पर हम जिसका अल्प प्रयोग करते हैं, उस बुद्धि को कुछ अधिक करने को उकसाती हैं ये अजीबोगरीब कहानियाँ। यहीं शेखचिल्ली की कहानियों की खासियत है।
इन खट्टे-मीठे और मजेदार किस्सों को हमने पहले डिमाई आकार में प्रकाशित किया था। पाठको ने इसे काफी पसंद किया। उन्हीं के आग्रह पर अब नये गेटअप में, ‘शेखचिल्ली के कारनामें’ आपके हाथों में है। आपके सुझावों का स्वागत है।
-प्रकाशक
शेखचिल्ली एक ऐसा किरदार है जो हम लोगों के इर्द-गिर्द रहता है।
कभी-कभी वह हमारे भीतर से प्रकट होकर अपना चमत्कार दिखा जाता है। उसकी
उपस्थिति का अहसास हमें तब होता है, जब हमारे ही हाथों कोई ऐसा कारनामा
अंजाम दे जाता है कि उपहास का पात्र बनकर दूसरों की नजर में स्वयं
शेखचिल्ली बन जाते हैं।
शेखचिल्ली जैसे पात्र इतिहास के पन्नों पर ढूंढ़ने से शायद न भी मिलें। लेकिन हमारे इर्द-गिर्द जरूर मिल जाते हैं। कभी-कभी तो ये अनजाने में हमारे भीतर से ही उठ खड़े होते हैं। ये बात-बात पर अपनी शेखी बघारते हैं और मौका मिलने पर ऐसे लोगों के भी कान कतर लेते हैं, जिनको कोई छू तक नहीं सकता। इनकी बेवकूफी मात दे जाती है ऊँची से ऊँची समझ को।
शेखचिल्ली जैसे पात्र इतिहास के पन्नों पर ढूंढ़ने से शायद न भी मिलें। लेकिन हमारे इर्द-गिर्द जरूर मिल जाते हैं। कभी-कभी तो ये अनजाने में हमारे भीतर से ही उठ खड़े होते हैं। ये बात-बात पर अपनी शेखी बघारते हैं और मौका मिलने पर ऐसे लोगों के भी कान कतर लेते हैं, जिनको कोई छू तक नहीं सकता। इनकी बेवकूफी मात दे जाती है ऊँची से ऊँची समझ को।
शेखचिल्ली कौन था ?
आज के युग में अगर किसी को बेवकूफ कहना हो तो लोग उसे
‘शेखचिल्ली’ के नाम से पुकारते हैं। क्योंकि जनाब
शेखचिल्ली
के कारनामे बुद्धिहीनता से भरे होते थे। हालाँकि उन्हें गुजरे एक जमाना
बीत गया लेकिन अजीब और हास्यास्पद हरकतें आज तक लोग याद करते हैं और शायद
रहती दुनिया तक की जाती रहें।
मियां शेखचिल्ली का जन्म एक छोटे से कस्बे के साधारण गांव में हुआ था उनके पिता का देहान्त उनके बाल्यकाल में ही हो गया था। उनकी गरीब विधवा मां ने मेहनत-मजदूरी करके उनका पालन-पोषण किया, इस आशा में कि उनका यह बेटा बड़ा होकर उसके बुढापें का सहारा बनेगा। मगर मां की ममता और लाड़-प्यार ने उसे आलसी और बुद्धिहीन बना दिया।
उनका घराना शेखों का घराना कहलाता था। इसलिए मां ने उनका नाम ही शेख रख दिया। अब सवाल यह उठता है कि उनके नाम के साथ चिल्ली शब्द कैसे जुड़ गया। यह भी एक अजीब दास्तान है। उस वक्त वह काफी छोटे थे जब उनके साथ खेलने वाले लड़के ने उनसे कहा कि चिल्ला क्यों रहा है, धीरे से नहीं बोल सकता क्या ?
एक दिन उनके दोस्तों ने उनसे गांव से कहीं दूर चलने की बात कही तो उन्होंने कहा-‘‘मैं नहीं जाऊंगा, मेरी माँ कल मुझ पर बहुत चिल्ली रही थी।’’ यह शब्द उन्होंने अपनी अक्ल दौड़ाने के बाद कहीं थी। आदमी के लिए तो चिल्ला शब्द ठीक है, लेकिन औरतों के लिए तो चिल्ली शब्द ही ठीक रहेगा।
उनके चिल्ली शब्द पर उनके दोस्तों को काफी हँसी आई और उन्होंने उसे चिल्ली-चिल्ली कहकर पुकारना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे उनके नाम के साथ चिल्ली शब्द भी जुड़ गया और वह उस गांव में शेखचिल्ली के नाम से पहचाने जाने लगे।
एक कहावत है कि बावले गांव में ऊंट बदनाम हो जाता है और यह कहावत शेखचिल्ली पर सटीक बैठती थी। स्वभाव से नटखट होने के साथ-साथ अव्वल दर्जें के बेवकूफ भी थे। उनकी मां उनके बेवकूफी भरे कारनामें सुनकर अपना सिर पीट लिया करती थीं। मियां शेखचिल्ली ने अपनी मां के सपनों को तोड़ डाला था।
शेखचिल्ली पूरे गांव में मशहूर हो गया, लोग उसकी बातों में रस लेने लगे। मियां शेख साहब को गुजरे एक जमाना हो गया लेकिन उनकी हास्यास्पद घटनाएं एवं कहानियां आज तक लोग बड़े चाव से सुनते हैं और अपने अन्दर झाकने का प्रयास करते हैं कि कहीं उनके अन्दर तो शेखचिल्ली छिपा नहीं बैठा।
अब मैं प्रस्तुत करता हूं जनाब शेखचिल्ली की हास्य घटनाओं और कहानियों का चित्रण।
मियां शेखचिल्ली का जन्म एक छोटे से कस्बे के साधारण गांव में हुआ था उनके पिता का देहान्त उनके बाल्यकाल में ही हो गया था। उनकी गरीब विधवा मां ने मेहनत-मजदूरी करके उनका पालन-पोषण किया, इस आशा में कि उनका यह बेटा बड़ा होकर उसके बुढापें का सहारा बनेगा। मगर मां की ममता और लाड़-प्यार ने उसे आलसी और बुद्धिहीन बना दिया।
उनका घराना शेखों का घराना कहलाता था। इसलिए मां ने उनका नाम ही शेख रख दिया। अब सवाल यह उठता है कि उनके नाम के साथ चिल्ली शब्द कैसे जुड़ गया। यह भी एक अजीब दास्तान है। उस वक्त वह काफी छोटे थे जब उनके साथ खेलने वाले लड़के ने उनसे कहा कि चिल्ला क्यों रहा है, धीरे से नहीं बोल सकता क्या ?
एक दिन उनके दोस्तों ने उनसे गांव से कहीं दूर चलने की बात कही तो उन्होंने कहा-‘‘मैं नहीं जाऊंगा, मेरी माँ कल मुझ पर बहुत चिल्ली रही थी।’’ यह शब्द उन्होंने अपनी अक्ल दौड़ाने के बाद कहीं थी। आदमी के लिए तो चिल्ला शब्द ठीक है, लेकिन औरतों के लिए तो चिल्ली शब्द ही ठीक रहेगा।
उनके चिल्ली शब्द पर उनके दोस्तों को काफी हँसी आई और उन्होंने उसे चिल्ली-चिल्ली कहकर पुकारना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे उनके नाम के साथ चिल्ली शब्द भी जुड़ गया और वह उस गांव में शेखचिल्ली के नाम से पहचाने जाने लगे।
एक कहावत है कि बावले गांव में ऊंट बदनाम हो जाता है और यह कहावत शेखचिल्ली पर सटीक बैठती थी। स्वभाव से नटखट होने के साथ-साथ अव्वल दर्जें के बेवकूफ भी थे। उनकी मां उनके बेवकूफी भरे कारनामें सुनकर अपना सिर पीट लिया करती थीं। मियां शेखचिल्ली ने अपनी मां के सपनों को तोड़ डाला था।
शेखचिल्ली पूरे गांव में मशहूर हो गया, लोग उसकी बातों में रस लेने लगे। मियां शेख साहब को गुजरे एक जमाना हो गया लेकिन उनकी हास्यास्पद घटनाएं एवं कहानियां आज तक लोग बड़े चाव से सुनते हैं और अपने अन्दर झाकने का प्रयास करते हैं कि कहीं उनके अन्दर तो शेखचिल्ली छिपा नहीं बैठा।
अब मैं प्रस्तुत करता हूं जनाब शेखचिल्ली की हास्य घटनाओं और कहानियों का चित्रण।
1
शेखचिल्ली के खयाली-पुलाव
एक दिन शेखचिल्ली की अम्मी ने उससे कहा- ‘‘बेटे ! अब
तुम जवान
हो गये हो। अब तुम्हें कोई काम-धंधा करना चाहिए।’’
‘‘क्या करूं ?’’
‘‘कोई भी काम करो।’’
‘‘लेकिन मुझे तो कोई भी काम आता ही नहीं, फिर मुझे कौन काम पर रखेगा ?’’
‘‘कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा बेटे, तू ही सोच मेरा बूढ़ा शरीर कब तक तेरा बोझ उठाता रहेगा ?’’
‘‘आप ऐसा कहती है तो ठीक है, मैं काम की तलाश में चला जाता हूँ आप बढ़िया सा भोजन बनाइए मैं खा-पीकर चला जाऊगा।’’
‘‘अभी बना देती हूँ।’’
शेखचिल्ली की अम्मी ने उनके लिए बढ़िया-बढ़िया पकवान बनाये और खिला-पीलाकर उन्हें नौकरी की तलाश में भेज दिया।
वह मस्ती में झूमते हुए घर से बाहर निकल पड़े। उनके दिमाग में नौकरी और मजदूरी के शिवा और कोई बात नहीं थी।
रास्ते में उन्हें एक व्यक्ति मिला जो अण्डों का झाबा सिर पर लिए परेशान हो रहा था। बोझ के मारे उसके कदम लड़खड़ा रहे थे। उसके शेख को देखते ही कहा-‘‘ऐ भाई ! मजदूरी करोगे ?’’
‘‘बिल्कुल करूंगा, बन्दा तो मजदूरी की तलाश में ही है।’’
‘‘तो मेरा यह झाबा ले चलो। इसमें अण्डे हैं। टूट न जाय। तुम इसे मेरे घर तक पहुँचा दोगे तो मैं तुम्हें दो अण्डे दूंगा।’’
‘‘सिर्फ दो अण्डे।’’
‘‘हाँ, कम नहीं हैं, जरा सोचों तो सही, दो अण्डे से तो इंसान की तकदीर बदल सकती है-और मेरा घर भी ज्यादा दूर नहीं है।’’
‘‘ठीक है मैं चलता हूँ।’’
‘‘क्या करूं ?’’
‘‘कोई भी काम करो।’’
‘‘लेकिन मुझे तो कोई भी काम आता ही नहीं, फिर मुझे कौन काम पर रखेगा ?’’
‘‘कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा बेटे, तू ही सोच मेरा बूढ़ा शरीर कब तक तेरा बोझ उठाता रहेगा ?’’
‘‘आप ऐसा कहती है तो ठीक है, मैं काम की तलाश में चला जाता हूँ आप बढ़िया सा भोजन बनाइए मैं खा-पीकर चला जाऊगा।’’
‘‘अभी बना देती हूँ।’’
शेखचिल्ली की अम्मी ने उनके लिए बढ़िया-बढ़िया पकवान बनाये और खिला-पीलाकर उन्हें नौकरी की तलाश में भेज दिया।
वह मस्ती में झूमते हुए घर से बाहर निकल पड़े। उनके दिमाग में नौकरी और मजदूरी के शिवा और कोई बात नहीं थी।
रास्ते में उन्हें एक व्यक्ति मिला जो अण्डों का झाबा सिर पर लिए परेशान हो रहा था। बोझ के मारे उसके कदम लड़खड़ा रहे थे। उसके शेख को देखते ही कहा-‘‘ऐ भाई ! मजदूरी करोगे ?’’
‘‘बिल्कुल करूंगा, बन्दा तो मजदूरी की तलाश में ही है।’’
‘‘तो मेरा यह झाबा ले चलो। इसमें अण्डे हैं। टूट न जाय। तुम इसे मेरे घर तक पहुँचा दोगे तो मैं तुम्हें दो अण्डे दूंगा।’’
‘‘सिर्फ दो अण्डे।’’
‘‘हाँ, कम नहीं हैं, जरा सोचों तो सही, दो अण्डे से तो इंसान की तकदीर बदल सकती है-और मेरा घर भी ज्यादा दूर नहीं है।’’
‘‘ठीक है मैं चलता हूँ।’’
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